ऐसा है पैटर्न
मेट्रो, डिस्को और नौकरी की तलाश में भेदभाव का सामना करने वाला ईसा अकेला नहीं है.
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में रिसर्चरों की एक पूरी टीम नस्लवाद और भेदभाव की घटनाओं को समझने पर काम कर रही है. ये रिसर्चर लोगों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनी यूरोपीय संघ की "एजेंसी फॉर फंडामेंटल राइट्स" के लिए काम करते हैं.
अपने हालिया शोध के लिए इन लोगों ने 28 देशों में हजारों लोगों से बात की. उन्होंने ऐसे 15,000 लोग ढूंढे जो कम से कम एक साल के लिए ईयू में रह चुके हैं लेकिन जिनका जन्म (या फिर उनके माता पिता का जन्म) यूरोप के बाहर कहीं हुआ था. साथ ही उन्होंने ये इंटरव्यू उस देश की औपचारिक भाषा में नहीं, बल्कि अन्य भाषाओं में किए ताकि वे सुनिश्चित कर सकें कि ऐसे लोगों की आवाजें भी इसमें शामिल हों जो इस तरह के दूसरे शोधों में हिस्सा ना ले पाते हों.
नतीजों के अनुसार 24 फीसदी लोगों ने माना कि पिछले 12 महीनों में उन्हें अपने धर्म, जाति या फिर आप्रवासी होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा है. मतलब यह हुआ कि यूरोप में एहम की तरह लाखों लोग हर दिन भेदभाव का सामना कर रहे हैं. और इस अलग बर्ताव की वजह सिर्फ इतनी है कि वे कहीं और से नाता रखते हैं या फिर उनकी मान्यताएं कुछ अलग हैं.
मुझे लगता है कि यहां जर्मनी में हमारे साथ जर्मन या यूरोपीय लोगों जैसा बर्ताव नहीं होता.
रिपोर्ट दिखाती है कि कुछ समुदायों के लिए हालात बदतर होते चले जा रहे हैं. रिसर्च के नतीजे दुखद हैं - नफरत और भेदभाव के खिलाफ जंग विफल हो रही है. समस्या से निपटने के लिए जो कानून और नीतियां बनाई गई हैं, वे लोगों की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं हैं.
इस सर्वे में यूरोपीय संघ में रहने वाले चार आप्रवासी समूहों के 10 से 31 फीसदी लोगों ने कहा कि सर्वे के पहले के 12 महीनों में उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा था.